हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं By Qita << हाथ जो बहर-ए-दुआ उठे हैं ... सिर्फ़ कह दूँ कि नाव डूब ... >> हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं नसीम-ए-मस्ताना रक़्स में है फ़ज़ा में नश्शा सा छा रहा है ख़ुनुक तराई के संग पारे असर में डूबे हुए पड़े हैं कि जैसे कोई हसीं नहा कर घनेरी ज़ुल्फ़ें सुखा रहा है Share on: