ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब By Qita << तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन ... शीशा-ए-दिल को अगर ठेस कोई... >> ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब हल्क़ा-ए-दाम टूट जाता है ज़िंदगी की गिरफ़्त में आ कर मौत का जाम टूट जाता है Share on: