शीशा-ए-दिल को अगर ठेस कोई लगती है By Qita << ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़... ज़िंदाँ ज़िंदाँ शोर-ए-अनल... >> शीशा-ए-दिल को अगर ठेस कोई लगती है आँसू बे-साख़्ता आँखों से छलक पड़ते हैं लेकिन ऐसे भी हैं कुछ अश्क जो हंगाम-ए-नशात मुस्कुराती हुई पलकों से टपक पड़ते हैं Share on: