जब चटानों से लिपटता है समुंदर का शबाब By Qita << पढ़ चुके हुस्न की तारीख़ ... मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हा... >> जब चटानों से लिपटता है समुंदर का शबाब दूर तक मौज के रोने की सदा आती है यक-ब-यक फिर यही टूटी हुई बिखरी हुई मौज इक नई मौज में ढलने को पलट जाती है Share on: