जहाँ आसाँ था दिन को रात करना By Qita << पैरो-कारी चापलूसी काले धन... चंद लम्हों को तेरे आने से >> जहाँ आसाँ था दिन को रात करना वो गलियाँ हो गई हैं एक सपना अब उन की याद है पलकों पे रौशन अब उन को कह नहीं सकते हम अपना Share on: