ख़िज़ाँ के बा'द तो हर साल यूँ बहार आई Admin Qita << ख़्वाब है और उन्हें पाने ... मैं ने कहा क्यूँ लाश पे आ... >> ख़िज़ाँ के बाद तो हर साल यूँ बिहार आई गई जो रात तो फिर सुब्ह बार बार आई जूँ-ही शबाब ने इक बार फेर लीं नज़रें पलट के हुस्न-ए-मलाहत न एक बार आई Share on: