ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है By Qita << तू हक़ीक़त को समझता है ति... तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन ... >> ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है मुस्कुरा कर फ़रेब खाता जा रौशनी क़र्ज़ ले के साक़ी से सर्द रातों को जगमगाता जा Share on: