ज़िंदगी में लग चुका था ग़म का सरमाया बहुत By Qita << यही तो दोस्तो ले दे के मे... ये हवाएँ तो मुआफ़िक़ थीं ... >> ज़िंदगी में लग चुका था ग़म का सरमाया बहुत इस लिए शायद कमाया हम ने कम पाया बहुत राँदा-ए-हर-फ़सल-ए-गुल हम कब न थे जो अब हुए सुनते हैं यारों को ये मौसम भी रास आया बहुत Share on: