ज़रूरतों ने सताया है इस क़द्र मुझ को Admin जरूरत शायरी, Qita << बस्ती की ये ऊँची हवेली दर... झेल कर सख़्ती पुलिस की और... >> ज़रूरतों ने सताया है इस क़दर मुझ को ग़म-ए-मआ'श ने घर से निकाल रक्खा है हमारे बच्चे ग़मों से हैं बे-नियाज़ अभी अभी ये मोरचा हम ने सँभाल रक्खा है Share on: