ब-क़ौल-ए-सोज़ 'जुरअत' क्या कहें हम फ़िक्र को अपनी By Qita << अभी पोशीदा हैं नज़रों से ... ज़ब्त-ए-गिर्या >> ब-क़ौल-ए-सोज़ 'जुरअत' क्या कहें हम फ़िक्र को अपनी हमारा शेर हैगा बादा-ए-वहदत का पैमाना वले जैसा कोई हो उस को वैसा नश्शा करता है ज़नाने को ज़नाना और मर्दाने को मर्दाना Share on: