अभी पोशीदा हैं नज़रों से ख़ज़ाने कितने By Qita << अजनबी बन के हँसा करती है ब-क़ौल-ए-सोज़ 'जुरअत&... >> अभी पोशीदा हैं नज़रों से ख़ज़ाने कितने गोश-ए-इंसाँ से हैं महरूम तराने कितने ख़त्म हो सकता नहीं सिलसिला-ए-उमर-ए-दराज़ बतन-ए-तख़्लीक़ में पिन्हाँ हैं ज़माने कितने Share on: