कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा By Qita << ख़ूँ-भरे जाम उंडेलता हूँ ... जो पूछता है कोई सुर्ख़ क्... >> कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा और माज़ी में ज़िंदगी भर दी उँगलियों को फ़ज़ा में लहरा कर तू ने इक दास्ताँ रक़म कर दी Share on: