करम जब आम है साक़ी तो फिर तख़सीस ये कैसी Admin Qita << खुलती हैं वो मस्त आँखें ह... हिन्द के मय-ख़ाने से इक स... >> करम जब आम है साक़ी तो फिर तख़सीस ये कैसी वो चाहे कम दे लेकिन सब को हिस्सा दे बराबर से कहा साक़ी ने मैं सब को ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ देता हूँ बराबर दे भी दूँ तो पी नहीं सकते बराबर से Share on: