खुलती हैं वो मस्त आँखें हंगाम-ए-सहर ऐसे Admin मन की सुंदरता शायरी, Qita << मिरा मन है शहर-ए-गोकुल की... करम जब आम है साक़ी तो फिर... >> खुलती हैं वो मस्त आँखें हंगाम-ए-सहर ऐसे तालाब में रातों को खिलते हों कँवल जैसे उस तरह से हँसती हैं मासूम तमन्नाएँ जिस तरह से बच्चों के हाथों में नए पैसे Share on: