कुछ समझ में नहीं आता ये तिलिस्म-ए-हस्ती By Qita << मिल का आटा है नल का पानी ... ख़ानक़ाहों के खुलें दर कि... >> कुछ समझ में नहीं आता ये तिलिस्म-ए-हस्ती उस की क़ुदरत के करिश्मे भी अजब होते हैं जान जब ख़ाक में पड़ती है तो होती है ख़ुशी ख़ाक जब ख़ाक में मिलती है तो सब रोते हैं Share on: