क्या बूद-ओ-बाश पूछो हो पूरब के साकिनो Admin दिल्ली, Qita << जो लोग तरफ़-दार अलीगढ़ के... जिस्म को छोड़ के रूदाद हु... >> क्या बूद-ओ-बाश पूछो हो पूरब के साकिनो हम को ग़रीब जान के हँस हँस पुकार के दिल्ली जो एक शहर था आलम में इंतिख़ाब रहते थे मुंतख़ब ही जहाँ रोज़गार के उस को फ़लक ने लूट के बरबाद कर दिया हम रहने वाले हैं उसी उजड़े दयार के Share on: