मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है By Qita << मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनि... जब भी खिलता है सर-ए-शाख़ ... >> मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने ज़बाँ पे मोहर लगी है तो क्या कि रख दी है हर एक हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में ज़बाँ मैं ने Share on: