मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को By ख़ुदा, Qita << कहीं दरिया कहीं वादी कहीं... मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई त... >> मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को जश्नत-ए-दार-ओ-सलीब समझा है ऐ तनफ़्फ़ुस के जाँचने वाले तुझ को कितना क़रीब समझा है Share on: