मौत की आग में तप तप के निखरती है हयात By हौसला, Qita << रूह को एक आह का हक़ है ज़िंदगी और शराब की लज़्ज़... >> मौत की आग में तप तप के निखरती है हयात डूब कर जंग के दरिया में उभरती है हयात ज़ुल्फ़ की तरह बिगड़ती है सँवरती है हयात वक़्त के दोश-ए-बिलोरीं पे बिखरती है हयात Share on: