मिरी सच्ची नियाज़-मंदी का By Qita << वो शहद और शफ़क़-भरी नींदे... हाल हर तालिब-ए-दीदार का ह... >> मिरी सच्ची नियाज़-मंदी का कुछ तो या-रब सिला दिया होता जिस लगन से किया है याद तुझे संग होता तो बोल उठा होता Share on: