मुफ़्लिसी के वक़्त अक्सर इशरत-ए-रफ़्ता की याद By Qita << न अहल-ए-मय-कदा ने मुस्कुर... न आया वो तो क्या हम नीम-ज... >> मुफ़्लिसी के वक़्त अक्सर इशरत-ए-रफ़्ता की याद यूँ दिखाती है झलक आईना-ए-इदराक पर दोपहर में जिस तरह दरिया से मैदाँ की तरफ़ चलते फिरते अब्र के टुकड़ों का साया ख़ाक पर Share on: