न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं Admin चाँदनी की शायरी, Qita << सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ु... मिरी जवानी बहारों में भी ... >> न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं न तेरी याद की अब चाँदनी बरसती है ये कैसा वक़्त, मोहब्बत में तेरी आया है मिरी हयात, तिरे ग़म को भी तरसती है Share on: