पौ फटे रेंगते झरने पे ये कौन आया है By Qita << साक़िया साक़िया सँभाल उसे ये तो बढ़ती ही चली जाती ह... >> पौ फटे रेंगते झरने पे ये कौन आया है बाल बिखरे हुए लिपटे हुए ख़्वाब आँखों से लूट लीं तिशनगि-ए-ज़ीस्त ने नींदें वर्ना यूँ प्यापे न बरसती मय-ए-नाब आँखों से Share on: