ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम By Qita << पौ फटे रेंगते झरने पे ये ... तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी ह... >> ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम जुज़ हरीफ़ान-ए-सितम किस को पुकारा जाए वक़्त ने एक ही नुक्ता तो किया है तालीम हाकिम-ए-वक़त को मसनद से उतारा जाए Share on: