रंग जब अपनी हक़ीक़त से शनासा हो जाए By Qita << सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ वो अँधेरे जो मुंजमिद से थ... >> रंग जब अपनी हक़ीक़त से शनासा हो जाए लाला-ज़ारों में भड़कता है अलाव बन कर रक़्स जब दायरा-ए-फ़न से उबल पड़ता है दनदनाता है समुंदर का बहाव बन कर Share on: