शम्अ रौशन है सर-ए-बज़्म निगाहों में मगर Admin आजादी शायरी इन हिंदी, Qita << आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें ... पा लिया फिर किसी उम्मीद न... >> शम्अ रौशन है सर-ए-बज़्म निगाहों में मगर किस को मालूम दबे पाँव अँधेरा आया सो गई मसनद-ए-शाही पे कहीं आज़ादी कौन सी रात गई किस का सवेरा आया Share on: