शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त By Qita << वो कसी दिन न आ सके पर उसे रात बोझल भी है भयानक भी >> शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त जब अँधेरे में जगमगाती है जाने क्यूँ ग़म-ज़दा तख़य्युल को तेरी आवाज़ याद आती है Share on: