थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था By Qita << लड़कियाँ चुनती हैं गेहूँ ... फिर किसी बात का ख़याल आया >> थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था पहले इक साया सा निकल के घर से बाहर आता है इस के ब'अद कई साए से उस को रुख़्सत करते हैं फिर दीवारें ढे जाती हैं दरवाज़ा गिर जाता है Share on: