तिरे फ़िराक़ में ज़हराब-ए-ग़म पिए जाऊँ By Qita << उठाते हैं मज़े जौर-ओ-सितम... तमन्ना कुछ तो ले आती है ल... >> तिरे फ़िराक़ में ज़हराब-ए-ग़म पिए जाऊँ हज़ार मौत के सदमे सहूँ जिए जाऊँ बग़ैर दोस्त के जीना गुनाह है लेकिन जो तू कहे तो मैं ये भी गुनाह किए जाऊँ Share on: