उठाते हैं मज़े जौर-ओ-सितम के By Qita << ये हवाएँ तो मुआफ़िक़ थीं ... तिरे फ़िराक़ में ज़हराब-ए... >> उठाते हैं मज़े जौर-ओ-सितम के कुछ ऐसे ख़ूगर-ए-बेदार हैं हम क़फ़स की तीलियाँ टूटीं तो फिर क्या असीर-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद हैं हम Share on: