वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में By Qita << रुख़्सार हैं या अक्स है ब... उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आल... >> वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में जाम-ए-मय पर गर्दिश आवे और मय-ख़ाना ख़राब चोब-ए-हर्फ़ी बिन अलिफ़ बे मैं नहीं पहचानता हूँ मैं अबजद-ख़्वाँ शनासाई को मुझ से क्या हिसाब Share on: