वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े By Qita << माँ की आग़ोश में हँसता हु... रात ढलने लगी है सीनों में >> वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े मेरी फ़िरदौस में बिखेरे हैं क़र्या-ए-माहताब के जूया बिस्तर-ए-ख़ाक पर बसेरे हैं Share on: