वक़्त की सई-ए-मुसलसल कारगर होती गई By Qita << गोरे हाथों में ये धानी चू... जो रानाई निगाहों के लिए फ... >> वक़्त की सई-ए-मुसलसल कारगर होती गई ज़िंदगी लहज़ा-ब-लहज़ा मुख़्तसर होती गई साँस के पर्दों में बजता ही रहा साज़-ए-हयात मौत के क़दमों की आहट तेज़-तर होती गई Share on: