वो बहर-ए-कर्ब-ओ-अलम का ख़ुलासा है यकसर By Qita << वो दिल नहीं रहा वो तबीअत ... उन में रहती थी इक हँसी बन... >> वो बहर-ए-कर्ब-ओ-अलम का ख़ुलासा है यकसर निचोड़ है वो तपिश की उबलती नदियों का मिरे वजूद को जिस दर्द ने तराशा है वो दर्द राज़ है लाखों सिसकती सदियों का Share on: