यक-ब-यक क्यूँ चमक उट्ठी हैं निगाहें तेरी By Qita << ये हुकूमत के पुजारी हैं य... उन को मिलता ही नहीं है दु... >> यक-ब-यक क्यूँ चमक उट्ठी हैं निगाहें तेरी इक किरण फूट रही है तिरी पेशानी से और भी तेज़ हुई जाती है रुख़्सार की आग जज़्बा-ए-शौक़-ओ-मोहब्बत की फ़रावानी से Share on: