उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं By Qita << यक-ब-यक क्यूँ चमक उट्ठी ह... ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने स... >> उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं जो सदफ़ है वही ख़ाली नज़र आता है उन्हें हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ हो या सुरमा-ए-चशम-ए-ख़ूबाँ हल्क़ा-ए-दाम ख़याली नज़र आता है उन्हें Share on: