ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल By Qita << मुमकिन है फ़ज़ाओं से ख़ला... शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी... >> ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल मता-ए-जाँ हैं तिरे क़ौल और क़सम की तरह गुज़शता साल इन्हें मैं ने गिन के रक्खा था किसी ग़रीब की जोड़ी हुई रक़म की तरह Share on: