आलाम-ओ-मसाइब से लड़ा करते हैं By Rubaai << आशोब-ए-ज़माना से है डरना ... ज़िंदा है अगर यार तो सोहब... >> आलाम-ओ-मसाइब से लड़ा करते हैं हर रंज को हँस हँस के सहा करते हैं हर ग़म हमें पैग़ाम-ए-तरब देता है हम ग़म के तलबगार रहा करते हैं Share on: