अब जज़्बा-ए-वहशत की क़सम मत खाओ By Rubaai << मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ... आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्... >> अब जज़्बा-ए-वहशत की क़सम मत खाओ रह रह के मोहब्बत की क़सम मत खाओ आँखों की चमक खोल न दे सारा भरम ख़ुद अपनी सदाक़त की क़सम मत खाओ Share on: