अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल Admin क़ासिद पर शायरी, Rubaai << अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी ... आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम ह... >> अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल फ़ासिद हुए क़ाएदे तो बिगड़े मा'मूल है ईद मोहज़्ज़ब न मोहर्रम माक़ूल हँसना महमूद है न रोना मक़्बूल Share on: