अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत Admin खामोश पर शायरी, Rubaai << अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-... अब क़ौम की जो रस्म है सो ... >> अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत गुम-गश्तगी और ख़ुद-फ़रोशी भी ग़लत कुछ कहिए अगर तो गुफ़्तुगू है बेजा चुप रहिए अगर तो है ख़मोशी भी ग़लत Share on: