अक्सर मैं यहाँ मिस्ल-ए-समुंदर आया By इश्क़, Rubaai << दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ... कितनों को जिगर का ज़ख़्म ... >> अक्सर में यहाँ मिस्ल-ए-समुंदर आया हाँ दायरा-ए-अक़्ल से बाहर आया लोहे के चने चबाना है इश्क़ 'फ़रीद' जो कर न सका कोई वो मैं कर आया Share on: