अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो By Rubaai << सुन सकते हो नग़्मा आज भी ... फिर अपनी तमन्नाओं का धागा... >> अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो जो लुत्फ़-ए-कलाम हैं वो सारे समझो आवाज़ गिरफ़्ता गो है उस ज़ाकिर की पहरों रोओ अगर इशारे समझो Share on: