अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू By Rubaai << ज़ुल्मत का तिलिस्म तोड़ क... सड़कों पे तिरी फिरता था म... >> अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू सख़्ती भी जो हो तो बुर्द-बारी कर तू पैदा किया ख़ाक से ख़ुदा ने तुझ को बेहतर है यही कि ख़ाक-सारी कर तू Share on: