बे फ़ाएदा रखता नहीं सर हाथों पर Admin मुनीर नियाज़ी शायरी, Rubaai << हर चंद गुनाहों से हूँ मैं... अपने आक़ा की हर घड़ी याद ... >> बे-फ़ाएदा रखता नहीं सर हाथों पर सर पर जो है हाथ इस में है लुत्फ़-ए-दिगर आक़ा के सलाम-ओ-नज़र की हसरत में रहता हूँ 'मुनीर' सर-ब-कफ़-ओ-दस्त-बसर Share on: