बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा By Rubaai << किस प्यार से होती है ख़फ़... किस दर्जा सुकूँ-नुमा हैं ... >> बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा भरती से कलाम है मुअर्रा मेरा मुर्ग़ान-ए-ख़ुश-ए-इलहान-ए-चमन बोलें क्या मर जाते हैं सुन के रोज़-मर्रा मेरा Share on: