छाया है बगूलों का फ़ुसूँ मंज़िल तक By Rubaai << कानों की ग़रज़ कलाम बतलात... कुछ वक़्त से एक बीज शजर ह... >> छाया है बगूलों का फ़ुसूँ मंज़िल तक मौजों से कहो ले के चलें साहिल तक क्यूँ उलझी हुई डोर हुई जाती है इक राह वो जाती है जो दिल से दिल तक Share on: