दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले Admin बेस्ट ऑफ़ लक शायरी, Rubaai << दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा... बे-बर्ग-ओ-नवा की शेर-ख़्व... >> दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले गुलशन से मुर्ग़-ए-गुल चहकते निकले क्या कहिए 'क़लक़' कि साफ़ कहना मुश्किल मय-ख़ाने से क्यूँ मस्त बहकते निकले Share on: