ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो Admin तलब शायरी, Rubaai << अक्सर ने है आख़िरत की खेत... ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़... >> ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो राहत-तलबी में वक़्त खोने वालो कुछ अपने बचाओ की भी सोची तदबीर ऐ डूबती नाव के डुबोने वालो Share on: