ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा By Rubaai << इक ख़्वाब की ताबीर हक़ीक़... मैं कौन यक़ीन-ए-बद-गुमानी... >> ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा ऐ राज़-ए-सिफ़ात-ओ-ज़ात मुझ में आ जा सोता संसार झिलमिलाते तारे अब भीग चली है रात मुझ में आ जा Share on: